लेखनी कविता -25-Jul-2022

# प्रतियोगिता
25/07/2022
विषय:-स्वैच्छिक

शीर्षक:--मेघ प्रलय के मचल रहे हैं,
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इतनी कृपा करो हे माते,
सुमन रहें नित सुरभि लुटाते।
मेघ प्रलय के मचल रहे हैं,
शून्य-धरित्री हम घबराते।टेक।

क्षिति-जल-अम्बर उथल-पुथल है,
पवन प्रदूषित,दूषित जल है,
तार-तार मर्यादा रोती,
स्नेह नयन का आज बिकल है।
भटक गये सब आज राह में,
देखो चाल चलें मदमाते । 
इतनी कृपा करो हे माते,
सुमन रहें नित सुरभि लुटाते।1।

निज ऑचल की छॉव मुझे दो,
छम-छम पायल पॉव मुझे दो,
नयन स्नेह के मेह मचलते,
मेरा सुन्दर गॉव मुझे दो ।
तेरा तुझको अर्पण करता,
तेरी लीला के गुण गाते।
इतनी कृपा करो हे माते,
सुमन रहें नित सुरभि लुटाते।2।

पावन पुण्य विचार भरे हों,
बाग-बगीचे हरे-भरे हों,
स्वच्छ रहे परिवेश हमारा,
घर-घर चौखट दीप धरे हों।
चलें सृजन के पन्थ सभी मिल,
छल-कपट त्याग उर मुसकाते।
इतनी कृपा करो हे माते,
सुमन रहें नित सुरभि लुटाते।3।

रचना मौलिक एवम् अप्रकाशित।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी 'हरीश,'
रायबरेली -(उप्र)-229010
9415955693,9125908549

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13 Comments

Saba Rahman

26-Jul-2022 11:49 PM

😊😊

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Khan

26-Jul-2022 11:00 PM

Bhut hi acchi 😊😊

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shweta soni

26-Jul-2022 09:47 PM

Bahut khub

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